ऋष्यशृंग का परिचय | Introduction to Rishyasringa
ऋष्यशृंग हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित एक अत्यंत पवित्र और विलक्षण ऋषि थे। उनका नाम दो शब्दों से बना है – “ऋष्य” अर्थात हिरण और “शृंग” अर्थात सींग। उनका जन्म एक हिरणी के गर्भ से हुआ था, जिससे उनके माथे पर सींग थे। वे पूर्णतः ब्रह्मचारी और स्त्रियों से अछूते थे, जिससे उनकी आध्यात्मिक शक्ति अत्यंत प्रभावशाली मानी गई।
जन्म की अद्भुत कथा: The Miraculous Birth of Rishyasringa

ऋष्यशृंग के पिता महर्षि विभांडक थे। एक दिन जब उन्होंने अप्सरा उर्वशी को देखा, तो काम भावना के कारण उनका वीर्य नदी में गिर पड़ा। उसी नदी का जल एक हिरणी ने पी लिया, और वह गर्भवती हो गई। उसी हिरणी से ऋष्यशृंग का जन्म हुआ, जिनके सिर पर हिरण जैसे सींग थे।
यह जन्म अत्यंत अलौकिक और दिव्य था, जिससे ऋष्यशृंग के जीवन का हर पक्ष रहस्यमय और प्रभावशाली बना।
वन में पालन-पोषण: Childhood in the Forest
महर्षि विभांडक ने अपने पुत्र को स्त्रियों और समाज से दूर एकांत वन में पाला। उनका उद्देश्य था कि ऋष्यशृंग ब्रह्मचर्य और साधना में लीन रहें और दुनियावी मोह से अछूते रहें। ऋष्यशृंग ने कभी किसी स्त्री का चेहरा तक नहीं देखा था।
उनकी यही निष्कलंकता उन्हें विशेष बनाती है।
अंग देश में वर्षा का संकट: Drought in the Kingdom of Anga
अंग देश के राजा रोमपाद के राज्य में भयंकर सूखा पड़ गया। जब उन्होंने ऋषियों से उपाय पूछा, तो बताया गया कि केवल एक अत्यंत पवित्र ब्रह्मचारी ऋषि ही इस संकट को दूर कर सकते हैं। ऋष्यशृंग ही ऐसे एकमात्र व्यक्ति थे, जिनकी उपस्थिति से वर्षा हो सकती थी।
राजा रोमपाद की युक्ति: The Clever Strategy of King Romapada

राजा रोमपाद ने कुछ सुंदर कन्याओं को साधु वेश में ऋष्यशृंग के पास भेजा। इन स्त्रियों ने उन्हें मिठास और प्रेम से मोहित किया, और अंततः उन्हें अंग देश ले आईं।
जैसे ही ऋष्यशृंग ने अंग भूमि पर कदम रखा, तुरंत मेघ गरजने लगे और मूसलधार वर्षा हुई।
राजकुमारी शांता से विवाह: Marriage with Princess Shanta
राजा रोमपाद ने अपनी दत्तक पुत्री शांता का विवाह ऋष्यशृंग से किया। शांता असल में अयोध्या नरेश दशरथ की पुत्री थीं, जिन्हें उन्होंने अंग देश के राजा को सौंपा था। यह विवाह दो महान राजवंशों का संगम था।
ऋष्यशृंग और शांता का दांपत्य सौहार्दपूर्ण और धार्मिक रूप से उच्च था।
रामायण में ऋष्यशृंग की भूमिका: Rishyasringa’s Role in Ramayana
राजा दशरथ को संतान प्राप्ति की इच्छा थी। तब ऋष्यशृंग को आमंत्रित किया गया और उन्होंने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ सम्पन्न कराया।
इसी यज्ञ के फलस्वरूप भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
आध्यात्मिक प्रतीक और शिक्षा: Symbolism and Teachings

ऋष्यशृंग का जीवन पवित्रता, ब्रह्मचर्य और तपस्या का प्रतीक है। उन्होंने सिद्ध किया कि सच्ची शक्ति बाह्य बल में नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धता में निहित है। उनका चरित्र यह सिखाता है कि जब मनुष्य मोह-माया से दूर रहता है, तो वह दिव्यता को प्राप्त कर सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य: Key Facts about Rishyasringa
तथ्य | विवरण |
---|---|
पिता का नाम | महर्षि विभांडक |
माता | एक हिरणी (गर्भ धारण के लिए जल पीया) |
पत्नी | राजकुमारी शांता (राजा दशरथ की पुत्री) |
प्रसिद्ध यज्ञ | पुत्रकामेष्ठि यज्ञ (राम का जन्म इसी से हुआ) |
प्रतीकात्मक स्वरूप | हिरण के सींग वाले तपस्वी, ब्रह्मचारी |
दूसरा योगदान | अंग देश में वर्षा कराना |
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FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्र.2 ऋष्यशृंग ने किससे विवाह किया?
उ. उन्होंने राजा दशरथ की पुत्री शांता से विवाह किया।
प्र.3 ऋष्यशृंग का रामायण में क्या योगदान है?
उ. उन्होंने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया जिससे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
प्र.4 क्या ऋष्यशृंग की पूजा होती है?
उ. हाँ, कई स्थानों पर उन्हें वर्षा लाने वाले ऋषि के रूप में पूजा जाता है।
प्र.5: ऋष्यशृंग का रामायण में क्या योगदान है?
उ. उन्होंने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया, जिससे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। उनका यह कार्य रामायण की कथा का आधार बना।
निष्कर्ष: Conclusion
ऋष्यशृंग का जीवन एक अद्भुत आध्यात्मिक गाथा है, जो हमें सिखाता है कि शुद्ध मन और निःस्वार्थ भक्ति से किसी भी असंभव को संभव बनाया जा सकता है। उन्होंने यज्ञ के माध्यम से राम जैसे दिव्य अवतार को जन्म दिलाया, जो पूरे मानव जाति के लिए धर्म और मर्यादा का प्रतीक बने।
ऋष्यशृंग एक ऋषि ही नहीं, बल्कि प्रकृति और दिव्यता के सेतु थे।
अस्वीकरण: Desclaimer
यह लेख पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है। इसमें दी गई जानकारी को ऐतिहासिक सत्य के रूप में न लिया जाए। किसी भी धार्मिक आस्था या भावना को ठेस पहुँचाना इसका उद्देश्य नहीं है।